Saturday, December 17, 2016

दिसम्बर

दिसम्बर तुम आए हो फिर एक बार....
अपनी अलविदा वाली चिठ्ठी और हिसाब किताब का खाता लेकर....

कहो...
किस बात का हिसाब दूँ इस बार ?

सर्दी की रातों में उन नर्म  हाथो के अलाव का....
या कोहरे के  पीछे से झांकती हुई अलसाई सी सुबहों का...

या कहो हिसाब दूँ तुम्हे  अदरक वाली चाय में घुली  उन बेहिसाब बातों का....

क्या गिनना चाहोगे एक ज़िद्दी बच्चे सा भींच रखा था जिन्हें
उन रेत से पलों को....

या जानना चाहोगे की कितनी बार ये चाहा मैंने
की इस बार तुम ना आओ...
और कितनी बार कहा मैंने की बस अब सब्र नहीं होता तुम आ जाओ....

छोड़ो ना ...
वक़्त और थोड़ा ही तो  है हमारे पास

चलो इस बार यादें समेटेंगे

तुम जताना की कैसे याद रखूं तुम्हे
और मैं मनाऊं की कितना भूल जाऊं तुम्हे....

कहोना...
इस बार कुछ बातें क्या करोगे मुझसे



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