Thursday, August 20, 2015

नारीवाद का ड्रामा

मेरे दफ्तर के नीचे एक पान वाले की है दुकान,
दुकान वाला लगता है, यू पी का हैं जनाब 

मैं अक्सर उससे पान-खजूर लेती हूँ,
कभी कभार कुछ बातें करने की कई कोशिशें भी करती हूँ,

पर ऐसा लगता है की वो मुझसे बात करते हुए कतराता है,
बहुत सोचा पर कारण समझ नहीं आता है,

आज मैंने उससे आखिर पूछ हि लिया,
भैया आप क्या यू पी से हैं ?
 ये पान खजूर तो बहुत बढ़िया बनातें है,
क्या इस शहर की हवा आपको अभी तक नहीं भाई है ?
क्यों इतने चुप चाप से रहते हैं
क्या कोई समस्या छायी है ?

वो पहली बार थोड़ा सा मुस्कुराया,
बोला मोहतरमा गप्पें तो हम बहुत हांकते हैं,
पर इस शहर की महिलाओं से ज़रा कतराते हैं। 

मैंने पुछा महिलाओं ने उसका ऐसा क्या बिगाड़ा है,
वो बोला नहीं नहीं अभी तक कुछ बिगाड़ा तो नहीं है,
पर सुना है शहरों में पढ़ी लिखी,
ए सी ऑफिसों में काम करती हुई, बड़ी गाड़ियों में घूमती हुई,
महिलाओं ने मिलकर कोई मोर्चा संभाला है। 

सुना मोर्चे का नारीवाद के नाम से बोलबाला है। 
अब मतलब तो कुछ हमें समझ नहीं आता है,
पर मुन्नी की अम्मा ने पिछले दिनों संभल कर रहने को कहा था,
बोला पास के बिरजू की बढ़ी धुनाई हुई उस दिन, गलती से एक महिला से टकरा गया था,
सुना है उस महिला के हाथों में जो नारीवाद का जो झंडा था ज़रा बिगड़ गया था। 

अब हम तो इस शहर में दो वक़्त की रोटी कमाना चाहते हैं,
मुनिया को पढ़ा लिखा कर डॉक्टर बनाना चाहते हैं। 
सीधी सादी सी ज़िन्दगी है मैडम,
इसलिए इस शहर की महिलाओं और नारीवाद से बहुत घबरातें हैं।